“Trump की Iran को सीधी चेतावनी: ‘Supreme Leader is an easy target’, बोले – अब सब्र की हद पार हो गई”

ट्रम्प का ईरान को खुला चेतवानी – “सर्वोच्च नेता एक आसान लक्ष्य है”, बोलें अमेरिका का धैर्य ख़त्म हो रहा है
इजराइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई को कड़ी चेतावनी दी है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा, “हम जानते हैं कि तथाकथित ‘सर्वोच्च नेता’ कहां छिपा है… वह एक आसान लक्ष्य है।” हालांकी अनहोने ये भी कहा कि चरण उनको लक्ष्य नहीं दिया जाएगा – लेकिन चेतावनी दी कि अगर नागरिकों ने मिसाइलें दागीं या अमेरिकी सैनिक गिरे, तो अमेरिका चुप नहीं बैठेगा।
उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी अपने पोस्ट में कहा कि ट्रम्प प्रशासन चाहता है कि ईरान शांतिपूर्वक यूरेनियम संवर्धन बंद करे, लेकिन अगर ईरान नहीं मानता, तो कार्रवाई करना संभव है। “यह दो तरीकों में से एक में होगा – आसान तरीका या दूसरा तरीका,” अनहोन लिखा।
हालांकी अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर कहा कि इजराइल के ईरान पर जो पहले हमले हुए थे, वो “एकतरफा” थे, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप को उन हमलों के बारे में पहले से पता था। इजरायली पीएम नेतन्याहू ने कथित तौर पर ट्रंप से सैन्य समर्थन का अनुरोध भी किया है।

अब तक, ट्रम्प ने ईरान पर सीधा हमला नहीं किया है, लेकिन सैन्य जहाजों और विमान क्षेत्र में रिपोजिशन किया है, जो एक स्पष्ट संकेत है कि स्थिति और भी गंभीर हो रही है। ट्रंप ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “उन्हें डील करनी चाहिए थी। अब मैं बातचीत के मूड में नहीं हूं।”
दूसरी तरफ, अमेरिकी खुफिया एजेंसी की प्रमुख तुलसी गबार्ड ने कांग्रेस में गवाही दी थी कि ईरान परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है। लेकिन ट्रंप ने उनकी बात को रिजेक्ट कर दिया और कहा, “मुझे इसकी परवाह नहीं है कि उसने क्या कहा। मुझे लगता है कि वे इसे पाने के बहुत करीब हैं।”
क्या विरोधाभास ने भ्रम बढ़ा दिया है। सांसदों जैसे कि थॉमस मैसी (रिपब्लिकन) और रो खन्ना (डेमोक्रेट) ने मिलकर एक बिल – ईरान युद्ध शक्तियों का संकल्प – पेश किया है, जिसके राष्ट्रपति को ईरान के युद्ध के खिलाफ करने से पहले कांग्रेस की अनुमति लेनी पड़ेगी।
इस बीच, कुछ रूढ़िवादी आवाजें जैसे टकर कार्लसन नेटवर्क भी अमेरिका की सीधी भागीदारी का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि अगर इजराइल युद्ध लड़ना चाहता है तो वह संप्रभु देश है, लेकिन अमेरिका को उसमें शामिल नहीं होना चाहिए।
मानवाधिकार समूहों और विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप अपने सलाहकारों और खुफिया तंत्र पर ज्यादा राजनीतिक आख्यान पर भरोसा कर रहे हैं। उनका मानना है कि अगर ट्रंप ठोस सबूत के बिना युद्ध में जाते हैं, तो वो एक और महंगा और अनावश्यक संघर्ष हो सकता है।
